क्या बताउँ उस दिन?
क्या हो गया साथ?
याद नहीं कुछ देर की,
शेष सभी स्मरण साथ –
दुपहिया वाहन और चौड़ी सड़क –
जैसे नया काला कपड़ा कड़क,
लेकिन थी विभाजक/डिवाइडर बिन ।
एक तरफ़ एक दुकान –
दुसरी ओर बियाबान ।
आगे-पीछे कोई नहीं ,
सामने साफ़-सुथरा ।
तीव्र और उचित गति ,
निर्विकार शुद्ध मति ,
कोई नहीं देख पाया !
तेज दौड़ता काला कुत्ता,
रास्ते को बेझिझक काटा।
निश्चिंत चलता वाहन टकराया ,
चालक का पैर फंसा ,
दुपहिया के नीचे ,
साथी वाहन के पीछे ,
सम्भल कर खड़ा होते हुए।
सहायता को लोग आए,
मनुष्य मनुज के काम आए।
गाड़ी छतिग्रस्त हुई,
दोनों सवारी चोट खाई,
बड़े संयोग की बात !
बहुत होके कम हुआ ,
जीवन को सुरक्षित पाया ।
सरकारें सड़कें बनवातीं हैं,
वचन निभातीं हैं,
रह जाती हैं बड़ी-बड़ी चूकें-
विभाजक बिन राष्ट्रीय राजमार्ग-
आमन्त्रण देती घटनाओं को,
रूप देती दुर्घटनाओं को,
ठगे जाते हैं लोग-
होते हैं घायल व अपंग,
बड़ा ही दुखद कुछ –
अन्त को पाते हैं।
:- गयशिर
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